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Showing posts from June, 2017

Father ~ "Super Dad" ~ ( God ) ~ Father

Father... Never Biased to his children.. Think first for his children & family.. Can't Sleep ,when his Child is in trouble.. Never do injustice with Children.. Never prove himself unfair for his children.. Treat every Child equally.. Don't show his problems to children... Spread happiness in family... Bring source of Joys for children & family.. Protect his family & Children.. Never Cry for Disappointments in Life.. Never Regret for past ... Live in present & thinks about bright future of his children.. Brings light in the dark of life for his children.. Never leave children in mid of their problems... A real solution to every problem of his childrens... Maintain a real balance in normal ,as well as in every tough situation in family.. Because he is not only father, but he is God~Father for his Children.

छोटी ख़ुशी

एक बार मिली जिंदगी, तो हमने भी शिकायत कर दी.. हमने जो चाहा, वो तो हमे मिला ही नही.. जिंदगी हंसके बोली... अरे पगले! मैं तो भेजती रही हमेशा, खुशियों के छोटे-छोटे जाम.. पर तू करता रहा इंतेज़ार ,पूरी बोतल का.. छोटा जाम तो ,तूने पिया ही नही... छोटी छोटी खुशियाँ ही, जिंदगी में बड़ा नशा देती हैं.. बड़ी बड़ी खुशियाँ कई बार, इंसान को मदहोश बना देती हैं... तो मेरे प्यारे! जा जी ले , और छोटी छोटी खुशियों के जाम पी ले.. नशा तुझे बड़ी ख़ुशियों का ही आएगा, ये बात तू समझ ले.. याद रख के , छोटी छोटी ख़ुशियों में छुपी होती है बड़ी खुशियां... क्योंकि बड़ी खुशी ,छोटी ख़ुशी की ही तो परछाई होती है...

चल दोस्त ! हम बचपन की तरफ फिर से भागें... Come on friend, let's run back to childhood ...

चल दोस्त ! हम बचपन की तरफ  फिर से भागें... चल झुका लें आसमाँ फिर से, अपने कदमों के आगे। जहाँ थे चाँद सितारे , जिनके लिए हम देर रात तक जागे... चल कदम मिला साथ चल,  के हम बचपन की तरफ फिर से भागें। चल आज तोड़ ले, अतीत के पेड़ से वो मीठी यादें.... मिलती थी खुशियां जहां छोटी छोटी बातों से, और बड़ो से होती थी प्यार भरी फरियादें। मुहल्ले के ओटलों पर,  होती थी ढेर सारी बातें.. और गली मोहल्ले में ही होती थी,  बचपन के दोस्तों की सारी मुलाकातें। निकलती थी जहाँ,  गुल्लक से टाफियां... गलती करने पर पड़ती थी पापा की डाँट , और फिर मिलती थी उनकी माफियाँ। नजरें ढूंढती थी हमेशा जहाँ,  हरदम अपने सुपर हीरो को.. और गर्मी की छुट्टियों में मन भागता,  सिर्फ अपनी नानी के घर को। मिलावटें नहीं हुआ करती थी, जहाँ रिश्ते-नातों में... वो बचपन ही एक सच था दोस्तों,  जहाँ झूलती थी खुशियां अपनेपन के झूलों में। आओ! आज के दिखावटी रिश्तों के "झूठ" को,  क्यों न अतीत के  प्यार भरे "सच" से मिलवा दें.. बेजान रिश्तों की हों अगर मुरझाई कलियाँ, तो उनको बचपन की यादों की बगिया में फिर खिला दें। चलो फिर से जी ले