Posts

Showing posts with the label अहिंसा

"एक संसद भगवान महावीर की भी लगे"

Image
                      जीयो और जीने दो "एक संसद भगवान महावीर की भी लगे"  ------------------------------ यह वर्ष 2023 समग्र जैन सम्प्रदाय के लिए ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व एवं प्राणी जगत के लिए चोबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के 2550 वें निर्वाण वर्ष के अत्यंत शुभ अवसर पर, किस प्रकार से अति महत्वपूर्ण हो सकता है, उस पर सभी  जैन  महानुभाव, विद्वान,वरिष्ठ एवं सभी समाज जन अवश्य विचार करें। 🙏 इस महत्वपूर्ण अवसर पर प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ से लेकर चोबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांतों और उनकी सीखों पर संगोष्ठी का आयोजन अलग अलग स्तर पर हो। हमारे भारत के गणमान्य नागरिक भी उसमें सहभागिता सुनिश्चित कर सके। भगवान महावीर के सिद्धांतों से भारत सहित विश्व को किस प्रकार लाभ प्राप्त हो सकता है, उस पर विचार हो। क्षत्रिय कुल में जन्म लेने वाले हमारे तीर्थंकर भगवन् भारतवर्ष को ही नहीं,अपितु सम्पूर्ण विश्व को "जीयो और जीने दो " का अमर सन्देश देते हैं। विचारों का आदान प्रदान और साधर्मी बन्धुओं में आपसी तालमेल का सामंजस्य बैठे यही प्रेरणा

"आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज – राष्ट्रचिन्तक” - Aacharya Shri V...

Image

विश्वशांति हितकारी सन्देश - "जीयो और जीने दो"

चल इंसान ! चल जाग ! चल उठ ! के हम फिर से एक नई दुनिया बनायेें जहाँ न हो कोई हिंसा मासूम जीवों के साथ, न हो माँस व्यापार ऐसा एक जहाँ बसायें।। जहाँ न सुनाई दे मूक पशु पक्षियों की चीत्कार, जहाँ न हो इंसान का इंसान को खत्म करने वाला सँस्कार। विश्व युद्ध से लेकर करोना महामारी तक इंसान है दहला, खत्म हो दुनिया से परमाणु बम और हर डरावना हथियार।। बंद हो अब तो हिंसा का व्यापार, देखो कैसे इंसान बेबस है। एक सूक्ष्म से कीटाणु (वाइरस) के आगे, इंसानियत हुई कैसे लाचार।। सत्य को जो इंसान है नकारता, वो अपने कर्मो को है पुकारता। जो भरा मन निजी स्वार्थ से, उसको लालच हमेशा है पुचकारता।। जो नहीं चलता कर्म सिद्धान्तों के अनुसार, उसे उसका भाग्य हमेशा है धिक्कारता। आत्म चिंतन और निज आत्म चेतना से होता हर अंधेरा दूर, उस अंतर्चेतना को नकारकर ये इंसान खुद को सर्वज्ञानी है मानता।। आज इंसान नहीं कर पा रहा है अपने भावों की विशुद्धि , वो मदमस्त हाथी जैसा अपने अहंकार में है लहराता । स्वछंद है जिसकी पाशविक प्रवर्त्ति और स्वच्छ नही जिसका मन, ऐसे में इंसान का करुणा रस भीतर से है विवेक को पुक