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आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज - राष्ट्रचिन्तक

"आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज - राष्ट्रचिन्तक" ------------------------- मयूर पीछी और कमण्डल है , उपकरण जिनका... अम्बर ही तो है,  आवरण  उनका.. त्याग और तपस्या की , साक्षात प्रतिमूर्ति हैं जो... भगवान महावीर की परंपरा के,  परम अनुयायी हैं वो... जो हर पल यही है चाहते,  देश मे शांति और सम्रद्धि का वास हो... जिनकी भावना ऐसी , कि कोई चैतन्य आत्मा कभी न उदास हो... विश्व शांति का संदेश , जो हैं चारो ओर फैलाते... अपने कल्याणकारी प्रवचनों से,  जो आत्मचेतना को जगाते... गुरुवर की महान है महिमा , प्रत्येक जीव पर करुणा दर्शाते... जीयो और जीने दो की जैनत्व परंपरा को,  जीवंत जो करते... जो आत्म साधना में सदा लीन रहते हैं... तपस्या में तपकर जो खरा सोना बने हैं... राष्ट्रहित राष्ट्र चिंतन के लिए , गुरुदेव सदैव खड़े हैं... कई कई तपस्वी जिनकी दी दीक्षा से , वैराग्य के मार्ग पर आगे बढे हैं.. ऐसे हैं आचार्य श्री विद्यासागर, जिनके पवित्र पावन चरण भारत भूमि मे पड़े हैं... ग्रहस्थ हों या हों दीक्षार्थी,  गुरुदेव सबको सदमार्ग दिखलाते... जीवन को कैसे है जीना,  ये भी गुरुवर हमको बतलाते... देश क

आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज - राष्ट्रचिन्तक जन जन के सन्त

*मयूर पीछी और कमण्डल है उपकरण जिनका...* *अम्बर ही तो है आवरण  उनका..* *त्याग और तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं जो...* *भगवान महावीर की परंपरा के परम अनुयायी हैं वो...* *देश मे शांति और सम्रद्धि का वास हो...* *जिनकी भावना ऐसी कि कोई चैतन्य आत्मा कभी न उदास हो...* *विश्व शांति का संदेश जो हैं चारो ओर फैलाते...* *अपने कल्याणकारी प्रवचनों से जो आत्मचेतना को जगाते...* *गुरुवर की महान है महिमा प्रत्येक जीव पर करुणा दर्शाते...* *जियो और जीने दो की जैनत्व परंपरा को जीवंत जो करते...* *जो आत्म साधना में सदा लीन रहते हैं...* *तपस्या में तपकर जो खरा सोना बने हैं...* *राष्ट्रहित राष्ट्र चिंतन के लिए गुरुदेव सदैव खड़े हैं...* *कई कई तपस्वी जिनकी दी दीक्षा से वैराग्य के मार्ग पर आगे बढे हैं..* *ऐसे हैं आचार्य श्री जिनके पवित्र पावन चरण भारत भूमि मे पड़े हैं...* *ग्रहस्थ हों या हों दीक्षार्थी गुरुदेव सबको सदमार्ग दिखलाते...* *जीवन को कैसे है जीना ये भी गुरुवर हमको बतलाते...* *गुरुवर तो जन जन में ज्ञान की ज्योति जगाते हैं... *अपनी गुरुवाणी से आत्मप्रगति का मार्ग दिखलाते हैं* *देश कै

भगवान महावीर - जैन दर्शन

अनेकांत के दृष्टा श्री भगवान महावीर ने द्रव्य के निरंतर बदलते असंख्य पर्याय दिखाये| मार्ग तो दिखाया पर मंजिल पाने के बाद किसी से नहीं मिले| अपनी मंजिल तक खुद ही चलना यही भगवान महावीर की शिक्षा थी| न सहारा, न साथी, न सुविधा, न संरक्षण न बचाव| अपनी नौका खुद चलाना होगा| कितनी भी भीड़ हो साधना अकेले ही होगी| यश के पीछे मत दौड़ना भटक जाओगे| ज्ञान भी खुद ही पाना होगा| दृष्टि भी खुद की ही होगी| आचरण भी अकेले का| वे एकांत पथिक थे| भटकाव मिटाया था उन्होंने| न किसी ईश्वर ने दुनिया बनाई, न वह अवतार लेगा, न पापों की क्षमा होगी, न कोई तुम्हें तारेगा| स्वयं पर विश्वास रखो| स्वयं ही प्रयत्न करो| स्वयं ही जानो| धर्म मार्ग है, मुक्ति मंजिल है| यात्री वही जो चलने का साहस जुटा सके| बाहरी यात्रा में अनुयायी हो , अंतर यात्रा में स्वयं का नेतृत्व स्वयं करो| पीछे कोई नहीं दिखेगा, आगे भी सिर्फ आपका अपना ज्ञान होगा जो पथ प्रदर्शन करेगा| (अन्य धार्मिक स्तोत्र से साभार प्राप्त)

जीवन द्रष्टान्त -1

🙏🏼 *जय जिनेंद्र* 🙏🏼 लाओत्से एक बार एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । अचानक हवाएं चलने लगी उसकी नजर एक सूखे पत्ते पर पड़ी। हवाओ के झोखों से वह पत्ता कभी एकदम ऊपर उड़ जाता फिर अचानक वह जमीन पर आ पड़ता था। कभी वह दाएं ओर कभी वह बायें ओर.. कभी ऊपर कभी नीचे... उसने देखा वह पत्ता बिल्कुल राजी था।उसे ऊपर उड़ने में कोई अहंकार नही था और न ही नीचे गिरने पर कोई शिकायत नही थी... दाये बाए पूरब पश्चिम किसी भी दिशा में जाने पर भी कोई विरोध नही.... बस चुपचाप वह पत्ता हवाओं के साथ मस्त था। लाओत्से वहा से उठ गया एक अदभुत आनन्द के साथ एक नए अनुभव के साथ...ये क्षण उसके जीवन में एक नई क्रान्ति उत्पन्न कर गया। जहाँ शिकवा शिकायत है वहाँ समर्पण नहीँ.... और जहाँ समर्पण है वहाँ कोई शिकवा नहीं.... *बस एक अहोभाव।* *एक अद्भुत शान्ति.. 😇* 🙏🏼 *पूर्ण धन्यवाद..*🙏🏼 *आभार से भरी हुई.....* (अन्य धार्मिक स्तोत्र से साभार प्राप्त)

Karma & Dharam ~ कर्म और धर्म

कर्म का सामना करो। धर्म की शरण लो। कर्म सामने आएगा उसे भोगना ही होगा। जागरूक होकर सामना करें। संसार मे पूण्य पाप का खेल चलता रहता है। तुम्हारे हाथ में कुछ है ही नही। बड़े बड़े महापुरुषों के जीवन को देखें। महाभारत,रामायण में वनवास मिला।राज्य छोड़ना पड़ा।भगवान पार्श्वनाथ को ,भगवान आदिनाथ को भी उपसर्ग आये। पर उन्होंने समता भाव धारण करके कर्मों का सामना करा। अपने परिणामों को समझो। भागोगे तो दुख बढेगा।