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जीवन यात्रा और जीवन विकास

जीवन यात्रा में मंज़िल ,पड़ाव,अध्यात्म और जीवन विकास ये सभी अति महत्वपूर्ण पहलू हैं।किसी को भी नकारना कर्म सिद्धान्त को नकारने के बराबर ही माना जायेगा। हम पैदा होते हैं ,उससे पहले से ही जीवन में कर्मो की निर्जरा निरंतर चलती रहती है।जिस प्रकार मिट्टी का रूप और खुशबू मौसम अनुसार बदलता रहता है,उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी कर्म अनुसार बदलता रहता है। इसी दौरान विभिन्न किस्म के पड़ाव जीवन मे आते हैं।पुरुषार्थ रहित होने पर मनुष्य की कर्मगति उसे भाग्य अनुसार  भृमण करवाती रहती है।अगर  आध्यात्मिक प्रगति हो चुकी हो या हो रही हो तो मंज़िल सही दशा में आने लगती है। सही मायने में जीवन विकास के लिए आध्यात्मिक उन्नति अति आवश्यक है।परन्तु उसका स्वरुप समझना जरूरी है। धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की अवधारणा अगर सही मायने में जिसको समझ मे आ गयी तो फिर उसका जीवन संतुलित होना शुरू हो सकता है। जय जिनेन्द्र