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अपनों के आशीर्वाद

नहीं बसेगी बस्ती अब उन गली और चोबरो में.. नही रहेगी वो मस्ती  इन जीवन के अँधियारो में। रात और दिन निकल रहे ,और कुछ बात कह रहे... कुछ तो मतलब है सप्ताह के बीते इतवारों में। राह नही मुड़ सकती मंज़िल तेरी नहीं झुक सकती.. जो तेरा अपना लक्ष्य है वो तुझे ही पाना है। तू नदी को वो बहती धारा है जो रुक नहीं सकती.. मत रुक ऐ जीवन के राही तुझे इस पार आना है। बहता रह उन्मुक्त होकर अपने जीवन को सही दिशा में.. के अंत में तुझे जीवन के सबसे बड़े महासागर में मिल जाना है। अतीत से अपने अपनों के आशीर्वादों के खजाने लाया हूँ.. बहुत देर चला अब लौटकर वापस आया हूँ। स्वप्निल जैन (स्वरचित)

चल दोस्त

चल झुका लें आसमाँ फिर से, अपने कदमों के आगे... चल आज तोड़ ले, अतीत के पेड़ से वो मीठी यादें.. चल कदम मिला साथ चल, के हम बचपन की तरफ फिर भागें... जहाँ थे चाँद सितारे ,जिनके लिए हम देर रात तक जागे.. मिलती थी खुशियां जहां, छोटी छोटी बातों से.. मुहल्ले के ओटलों पर, होती थी ढेर सारी बातें.. निकलती थी जहाँ, गुल्लक से टाफियां... गलती करने पर पड़ती थी ,पापा की डाँट फिर माफियाँ.. नजरें ढूंढती थी हमेशा जहाँ, अपने सुपर हीरो को.. और गर्मी की छुट्टियों में, अपनी नानी के घर को.. चलो फिर से जी लें, थोड़ा सा बचपन हम सब में.. के बसता है "एक रब", हम सब के बचपन में.. ढूंढना है उस "रब" को,आज हम सब में.. नफरतें मिटा दे जो, दिलों को दिल से मिला दे वो.. आओ उस अतीत के "सच" को, आज के "झूठ" से मिला दें.. मिलावटें नहीं हुआ करती थी,जहाँ रिश्ते-नातों में.. वो बचपन ही एक सच था, जहाँ झूलती थी खुशियां अपनेपन के झूलों में.. • चल झुका लें आसमाँ ,फिर अपने कदमों के आगे... चल आज तोड़ ले, अतीत के पेड़ से मीठी यादें..

Ahinsa Parmo Dharm ~ An Universal Truth

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Ahinsa