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मन में उत्साह जगाने वाली हिंदी कविता - Inspirational Poem

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नव भारत निर्माण - New Rising India

#नव भारत निर्माण चलो साथ मिलकर एक नव भारत निर्माण करते हैं🇮🇳  न तेरा हो न मेरा हो , ये भारत हम सबका हँसता 😊 चेहरा हो। एक हो जाएं सारी नदियाँ,  पानी न तेरा हो न मेरा हो... जाग जाएं सभी भारतवासी गहरी नींद से , और एक नया सवेरा हो। रात को चैन की नींद तुझे भी आये और मुझे भी आये। जात पात की चिंता सिर्फ देशविरोधियों को ही सताये। नए भारत के किसान अपनी मेहनत की फसल का सही दाम पाएँ, गरीब करे जी भर के मेहनत और उनको इतना मिले की भूख  न सताये। अमीर हो चाहे गरीब हो , हर कोई मेहनत से देश को आगे बढ़ाए.. मध्यम वर्ग  भी है देश की ताकत , आओ सब मिलजुलकर नया भारत बनाएँ। बढे आगे मेरा देश और देश का हर नौजवान, जात पात के भेदभाव से नया भारत जब मुक्ति पाए। एक हो सभी की मंज़िल , और एक हो सभी के इरादे... तेरी नही मेरी भी एक चाहत हो,  नए भारत में सबके दिलों में राहत हो। तरक्की करे इक्कसवीं सदी का भारत कुछ इस तरह, भृष्टाचार न रह पाए यहाँ और देश में शिष्टाचार का निवास हो। आपस मे झगड़ते झगड़ते बीत गयी , न जाने कितनी सदियां... एक मजबूर नही , एक मजबूत भारत हमारा हो। देश की सरहदें हों पूर्ण सुरक्षित, दुश्म

उड़ जा रे पंछी - Flying Hopes

चल उड़ जा रे पंछी , एक बार फिर से भोर भई .... माना के तेरी उड़ान है अभी थोड़ी सी छोटी.. पर तेरी उम्मीदों का आसमां है बहुत बड़ा। तुझे अपने पंखों को,  थोड़ा और फैलाना होगा... नापना है जीवन का आसमान अगर, तो लम्बी उड़ान के लिए बढ़ना होगा। तू बैठा है पेड़ की जिस शाखा पर, उसीको क्यों तू काट रहा... उम्मीदों को तू अपनी,  बेवकूफी से किस कदर छाँट रहा। जब तक नही जुड़ेगा सकारात्मक विचारों से , तेरे मन का धागा... तब तक तू रहेगा , अपने आप में अभागा। चल चुन ले वह मन का दाना , अपनी उम्मीदों को भोग लगाने का..  मन ही मन स्वयम को जीत ले , यही तरीका है संसार सागर में नैया पार लगाने का। चल ले चल अपनी कश्ती , इस संसार सागर में... के तुझे अब , तूफानों से भी टकराना होगा। बीच मझदार में, फंसी अगर तेरी कश्ती... तो तुझे ही उसे, उस पार लगाना होगा । तेरा कर्म ही ,तेरा परम धर्म है.... ये बात तुझे अब, सबको बतलाना होगा। मिलती हैं मंज़िले ,उन्ही कर्मवीरों को... जिन्हें भरोसा होता है ,खुदके बाजुओं पर। के तुझे अपने कंधो पर , उम्मीदों का बोझ खुद ही उठाना होगा... आखिर ये तेरी अपनी है उड़ान,  और अपनी तक़दीर तुझे ही खुद बन

बचपन के मेहमान - Bachpan ke Mehmaan - guests of childhood

चल वक्त से थोड़ा सा फिर मजाक कर ले... जो खोये हैं लम्हे उन्हें याद ही कर ले । क्या थी तेरी-मेरी हैसियत बचपन की गलियों में... चल आज फिर उस बचपन को याद कर ले। तोड़ लेता था तू डगाल पर लगी इमलियो को... न रोकता था तू साइकिल के पेडलो को। भागता था एक तेज हवा सा स्कूल के मैदानों में... तू ही तो था जो क्रिकेट का असली आल राउंडर था। थाम लेता था एग्जाम्स के दिनों में पैन को यूँ.. के तुझ से बड़ा पढ़ाकू भी कोई न था। क्या लगती थी आई एम् पी भी तेरे ज्ञान के आगे.. के आधा पेपर तो तू छपने के पहले ही बाँट देता था। दौड़ता था बचपन तेरा गली, मोहल्लों और स्कूल के मैदानों में .. आज दौड़ता है तू जिंदगी के घमासान आसमान में। छूना चाहता है तू चाँद और सितारों को.. भूल जाता है तू अपनी ही ज़मीन के नजारों को। दौड़ कौनसी अच्छी लगी अब तुझे... या भूल गया तू बचपन के मासूम अरमानों को। थोड़ा सा अभी जगा हुआ है... तो जगा ले फिर बचपन के मेहमानों को। ये मेहमान ही हैं जो पुरानी यादों से निकल आते हैं.. मिलने आते हैं फिर अपने घर चले जाते हैं। जिंदगी यु ही बीत जायेगी हमेशा की तरह.. ये मेहमान फिर भी आ आकर तुझे हमेशा गुद

Happy Father's Day- Pita Ka Ashirwad

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