उड़ जा रे पंछी - Flying Hopes
चल उड़ जा रे पंछी ,
एक बार फिर से भोर भई ....
माना के तेरी उड़ान है अभी थोड़ी सी छोटी..
पर तेरी उम्मीदों का आसमां है बहुत बड़ा।
तुझे अपने पंखों को,
थोड़ा और फैलाना होगा...
नापना है जीवन का आसमान अगर,
तो लम्बी उड़ान के लिए बढ़ना होगा।
तू बैठा है पेड़ की जिस शाखा पर,
उसीको क्यों तू काट रहा...
उम्मीदों को तू अपनी,
बेवकूफी से किस कदर छाँट रहा।
जब तक नही जुड़ेगा सकारात्मक विचारों से ,
तेरे मन का धागा...
तब तक तू रहेगा ,
अपने आप में अभागा।
चल चुन ले वह मन का दाना ,
अपनी उम्मीदों को भोग लगाने का..
मन ही मन स्वयम को जीत ले ,
यही तरीका है संसार सागर में नैया पार लगाने का।
चल ले चल अपनी कश्ती ,
इस संसार सागर में...
के तुझे अब ,
तूफानों से भी टकराना होगा।
बीच मझदार में, फंसी अगर तेरी कश्ती...
तो तुझे ही उसे, उस पार लगाना होगा ।
तेरा कर्म ही ,तेरा परम धर्म है....
ये बात तुझे अब, सबको बतलाना होगा।
मिलती हैं मंज़िले ,उन्ही कर्मवीरों को...
जिन्हें भरोसा होता है ,खुदके बाजुओं पर।
के तुझे अपने कंधो पर ,
उम्मीदों का बोझ खुद ही उठाना होगा...
आखिर ये तेरी अपनी है उड़ान,
और अपनी तक़दीर तुझे ही
खुद बनाना होगा।
अभी तो तू ही जगा है,
तुझे औरों को भी जगाना होगा...
खुद से इंसान कब तक भागेगा,
यह डर सबके अंदर से भगाना होगा।
चल उड़ जा रे पंछी ,
एक बार फिर से भोर भई ....
स्वप्निल जैन
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