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आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज - राष्ट्रचिन्तक

"आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज - राष्ट्रचिन्तक" ------------------------- मयूर पीछी और कमण्डल है , उपकरण जिनका... अम्बर ही तो है,  आवरण  उनका.. त्याग और तपस्या की , साक्षात प्रतिमूर्ति हैं जो... भगवान महावीर की परंपरा के,  परम अनुयायी हैं वो... जो हर पल यही है चाहते,  देश मे शांति और सम्रद्धि का वास हो... जिनकी भावना ऐसी , कि कोई चैतन्य आत्मा कभी न उदास हो... विश्व शांति का संदेश , जो हैं चारो ओर फैलाते... अपने कल्याणकारी प्रवचनों से,  जो आत्मचेतना को जगाते... गुरुवर की महान है महिमा , प्रत्येक जीव पर करुणा दर्शाते... जीयो और जीने दो की जैनत्व परंपरा को,  जीवंत जो करते... जो आत्म साधना में सदा लीन रहते हैं... तपस्या में तपकर जो खरा सोना बने हैं... राष्ट्रहित राष्ट्र चिंतन के लिए , गुरुदेव सदैव खड़े हैं... कई कई तपस्वी जिनकी दी दीक्षा से , वैराग्य के मार्ग पर आगे बढे हैं.. ऐसे हैं आचार्य श्री विद्यासागर, जिनके पवित्र पावन चरण भारत भूमि मे पड़े हैं... ग्रहस्थ हों या हों दीक्षार्थी,  गुरुदेव सबको सदमार्ग दिखलाते... जीवन को कैसे है जीना,  ये भी गुरुवर हमको बतलाते... देश क

Hum Sab Karmon ke Adheen Hain ~ हम सब कर्मों के अधीन हैं।

कर्मों के अधीन घटित होने वाली परिस्थितियों पर गुमान क्यों? एक बार कागज का एक टुकड़ा हवा के वेग से उड़ा और पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा। पर्वत ने उसका स्वागत किया और पूछा -भाई! यहाँ कैसे पधारे ? कागज ने दंभ से कहा-अपने दम पर। "जैसे ही कागज ने अकड़ से कहा अपने दम पर" !! तभी हवा का दूसरा झोंका आया और कागज को उड़ा ले गया सीधा गंदी नाली । अगले ही पल वह कागज नाली में गल-सड़ गया। जो दशा एक कागज की है वही दशा हमारी है। पुण्य की अनुकूल वायु का वेग आता है तो हमें शिखर पर पहुँचा देता है, और पाप का झोंका आता है तो रसातल पर पहुँचा देता है। किसका मान ? कैसा गुमान ? जीवन की सच्चाई को समझें। संयोग हमारे कर्मो के अधीन हैं और कर्म कब क्या करवट ले , कोई नहीं जानता। इसलिए कर्मों के अधीन घटित होने वाली परिस्थितियों का  गुमान क्यों ? जैन दर्शन और वैदिक दर्शन वर्तमान के कर्म एवं पूर्व संचित कार्मिक एकाउंट पर जीवन दर्शन और उसके अच्छे बुरे परिणाम को मान्यता देता है। आज का पुरुषार्थ ही आने वाले कर्मों के अकॉउंट को याने की भाग्य को निर्धारित करता है।जन्मों से संचित पुण्य भी एक पल की गलती से नष्

भगवान महावीर - जैन दर्शन

अनेकांत के दृष्टा श्री भगवान महावीर ने द्रव्य के निरंतर बदलते असंख्य पर्याय दिखाये| मार्ग तो दिखाया पर मंजिल पाने के बाद किसी से नहीं मिले| अपनी मंजिल तक खुद ही चलना यही भगवान महावीर की शिक्षा थी| न सहारा, न साथी, न सुविधा, न संरक्षण न बचाव| अपनी नौका खुद चलाना होगा| कितनी भी भीड़ हो साधना अकेले ही होगी| यश के पीछे मत दौड़ना भटक जाओगे| ज्ञान भी खुद ही पाना होगा| दृष्टि भी खुद की ही होगी| आचरण भी अकेले का| वे एकांत पथिक थे| भटकाव मिटाया था उन्होंने| न किसी ईश्वर ने दुनिया बनाई, न वह अवतार लेगा, न पापों की क्षमा होगी, न कोई तुम्हें तारेगा| स्वयं पर विश्वास रखो| स्वयं ही प्रयत्न करो| स्वयं ही जानो| धर्म मार्ग है, मुक्ति मंजिल है| यात्री वही जो चलने का साहस जुटा सके| बाहरी यात्रा में अनुयायी हो , अंतर यात्रा में स्वयं का नेतृत्व स्वयं करो| पीछे कोई नहीं दिखेगा, आगे भी सिर्फ आपका अपना ज्ञान होगा जो पथ प्रदर्शन करेगा| (अन्य धार्मिक स्तोत्र से साभार प्राप्त)