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विश्वशांति हितकारी सन्देश - "जीयो और जीने दो"

चल इंसान ! चल जाग ! चल उठ ! के हम फिर से एक नई दुनिया बनायेें जहाँ न हो कोई हिंसा मासूम जीवों के साथ, न हो माँस व्यापार ऐसा एक जहाँ बसायें।। जहाँ न सुनाई दे मूक पशु पक्षियों की चीत्कार, जहाँ न हो इंसान का इंसान को खत्म करने वाला सँस्कार। विश्व युद्ध से लेकर करोना महामारी तक इंसान है दहला, खत्म हो दुनिया से परमाणु बम और हर डरावना हथियार।। बंद हो अब तो हिंसा का व्यापार, देखो कैसे इंसान बेबस है। एक सूक्ष्म से कीटाणु (वाइरस) के आगे, इंसानियत हुई कैसे लाचार।। सत्य को जो इंसान है नकारता, वो अपने कर्मो को है पुकारता। जो भरा मन निजी स्वार्थ से, उसको लालच हमेशा है पुचकारता।। जो नहीं चलता कर्म सिद्धान्तों के अनुसार, उसे उसका भाग्य हमेशा है धिक्कारता। आत्म चिंतन और निज आत्म चेतना से होता हर अंधेरा दूर, उस अंतर्चेतना को नकारकर ये इंसान खुद को सर्वज्ञानी है मानता।। आज इंसान नहीं कर पा रहा है अपने भावों की विशुद्धि , वो मदमस्त हाथी जैसा अपने अहंकार में है लहराता । स्वछंद है जिसकी पाशविक प्रवर्त्ति और स्वच्छ नही जिसका मन, ऐसे में इंसान का करुणा रस भीतर से है विवेक को पुक