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Paryushan Parv... आया पर्यूषण पर्व, मन हर्षित हो उठा हमारा...

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Paryushan Parv पर्यूषण पर्व

नीचे देखा तीन गुण...

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नीचे देखा तीन गुण...   नीचे देखा तीन गुण, जीव - जंतु बच जाए। ठोकर की लागे नहीं, पड़ी वस्तु मिल जाये ।। ये चार पँक्तियाँ अपने बचपन में अपनी दादीजी से सुना करता था।  इन्हीं पँक्तियों को आध्यत्मिक भाव के साथ आगे बढ़ाते हुए  कुछ और पँक्तियों के साथ आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।    "जीवदया" के भाव से, "अहिंसा" का फूल जब खिल जाए... किसको पता रे प्राणी, तेरा यह भव परभव तर जाए.. कर्म बंधते हैं जब, देते हैं तुझको ठोकर.. क्या पाया  और साथ क्या ले गया, ये दुर्लभ मनुष्य जन्म खोकर... है जीव! देखकर चलेगा यदि, तो दुर्लभ आत्म ज्ञान मिल जाये... तू तो तरेगा ही इस संसार से, शायद तेरे साथ और भी जीव तर जायेँ... और भी जीव तर जायेँ...            और भी जीव तर जायेँ... नीचे देखा तीन गुण, जीव - जंतु बच जाए। ठोकर की लागे नहीं, पड़ी वस्तु मिल जाये ।।      ।। धन्यवाद ।।             स्वप्निल जैन    

वर्ष २०२३ -भगवान महावीर का २६२२वें जन्मकल्याणक एवँ २५५०वें मोक्षकल्याणक महामहोत्सव का महत्वपूर्ण वर्ष

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स्वर्णिम इतिहास लिए भारतवर्ष की पवित्र भूमि धर्मप्रदान संस्कृति अपने में स्थापित किये हुए है, जिसकी पवित्र ऊर्जा से ही हम विश्वगुरु कहलाये।  २०२३ -भगवान महावीर का २६२२वें जन्मकल्याणक एवँ २५५०वें मोक्षकल्याणक महामहोत्सव का महत्वपूर्ण वर्ष है। वर्तमान समय में भगवान महावीर के सिद्धांतों को अपनाकर सम्पूर्ण विश्व में शांतिपूर्ण वातावरण स्थापित करने का प्रयास किया जा सकता है।   चल इंसान ! चल जाग ! चल उठ ! के हम फिर से एक नई दुनिया बनायेें..... जहाँ न हो कोई हिंसा मासूम जीवों के साथ , न हो माँस व्यापार ऐसा एक जहाँ बसायें। जहाँ न सुनाई दे मूक पशु - पक्षियों की चीत्कार , जहाँ न हो इंसान का इंसान को खत्म करने वाला सँस्कार। विश्व युद्ध से लेकर करोना महामारी तक इंसान है दहला , खत्म हो दुनिया से परमाणु बम और हर डरावना हथियार। एक सूक्ष्म से कीटाणु ( वाइरस ) के आगे , देखो कैसे इंसान बेबस है.... इंसानियत हुई कैसे लाचार, बंद हो अब तो हिंसा का व्यापार।   सत्य को जो इंसान है नकारता , वो