वर्ष २०२३ -भगवान महावीर का २६२२वें जन्मकल्याणक एवँ २५५०वें मोक्षकल्याणक महामहोत्सव का महत्वपूर्ण वर्ष

स्वर्णिम इतिहास लिए भारतवर्ष की पवित्र भूमि धर्मप्रदान संस्कृति अपने में स्थापित किये हुए है, जिसकी पवित्र ऊर्जा से ही हम विश्वगुरु कहलाये। 
२०२३ -भगवान महावीर का २६२२वें जन्मकल्याणक एवँ २५५०वें मोक्षकल्याणक महामहोत्सव का महत्वपूर्ण वर्ष है। वर्तमान समय में भगवान महावीर के सिद्धांतों को अपनाकर सम्पूर्ण विश्व में शांतिपूर्ण वातावरण स्थापित करने का प्रयास किया जा सकता है।



 
चल इंसान ! चल जाग ! चल उठ !
के हम फिर से एक नई दुनिया बनायेें.....


जहाँ हो कोई हिंसा मासूम जीवों के साथ,

हो माँस व्यापार ऐसा एक जहाँ बसायें।




जहाँ सुनाई दे मूक पशु - पक्षियों की चीत्कार,
जहाँ हो इंसान का इंसान को खत्म करने वाला सँस्कार।


विश्व युद्ध से लेकर करोना महामारी तक इंसान है दहला,
खत्म हो दुनिया से परमाणु बम और हर डरावना हथियार।

एक सूक्ष्म से कीटाणु (वाइरस) केआगे,

देखो कैसे इंसान बेबस है....


इंसानियत हुई कैसे लाचार,

बंद हो अब तो हिंसा का व्यापार।


 


सत्य को जो इंसान है नकारता,
वो अपने कर्मो को है पुकारता।


जो भरा मन निजी स्वार्थ से,
उसको लालच हमेशा है पुचकारता।

जो नहीं चलता कर्मसिद्धान्तों के अनुसार

उसे उसका भाग्य हमेशा है धिक्कारता।


आत्म चिंतन और निज आत्म चेतना से होता हर अंधेरा दूर,
अंतर्चेतना को नकारकर इंसान खुद को सर्वज्ञानी है मानता।



आज इंसान नहीं कर पा रहा है अपने भावों की विशुद्धि ,
वो मदमस्त हाथी जैसा अपने अहंकार में है लहराता


स्वछंद जिसकी पाशविक प्रवर्त्ति - स्वच्छ नही जिसका मन,
ऐसे में इंसान का करुणा रस भीतर से रोकर विवेक को है पुकारता




अब तो समझो प्रकृति का मीटर हुआ है अप (up),
तभी तो सारी दुनिया का हुआ  लॉक डाउन।


वो कीटाणु भी तो एक सूक्ष्म जीव है,
इस सत्य को मानव क्यों नहीं पहचानता।


  है मानव तू महामानव बन,

थाम ले दामन अहिंसा का...




जब थी दुनिया परेशान ,
तब महावीर ने दिया उपदेश - "जीयो और जीने दो"

 

इस सन्देश को संसार क्यों नही पुकारता...
इस सन्देश को संसार क्यों नही पुकारता.....


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"हर मिट्टी में अहिंसा की खुशबू है,
हर इंसान के भीतर छुपा भगवान है

हर जगह बसा है "प्रेमप्रकृति में,

हर चैतन्य आत्मा स्वयं में दयावान है।"

 



-
स्वप्निल जैन


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