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Showing posts from 2021

दीप श्रृंखला

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ऐ दोस्त ! मैं तुझ तक पहुँच न सका...

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निकला है शरद पूर्णिमा का चन्द्र आज...

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ईश्वर अपनी कृपा से श्वेत चाँदनी बिखेरता चला

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चल जिंदगी ! एक कप कॉफी पीते हैं...

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मन की प्रवृत्ति बदलने का प्रयास करें

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मन की प्रवृत्ति बदलने का प्रयास करें आइए! मन की प्रवृत्ति बदलने का एक छोटा सा प्रयास करें। जिसको करने से अंतर्मन को सुकून मिले, ऐसा कुछ साकारात्मक कार्य अवश्य करें। जिंदगी की दौड़-भाग में कहीं ऐसा न हो, कि हम स्वयं को ही खो बैठें। अगर मन को कुछ साकारात्मक कार्यों द्वारा खुशियाँ प्रदान कर सकते हैं, तो उसके लिए  प्रयत्न अवश्य करें। विगत कुछ वर्षोँ में जितनी तेजी से बाह्य जगत का वातावरण बदला है, उसका गहरा असर मानव मन पर पड़ना एक बेहद ही स्वाभाविक सी बात है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ ऐसा साकारात्मक गुण अवश्य होता है, जिससे उसके तेजी से बदलते जीवन में एक अच्छा अनुभव पाया जा सकता है। अपने भीतर के उस तत्व को खोजने का प्रयास करें, जो मन को वास्तविक रूप में सुकून प्रदान करता है। हो सकता है, ये छोटा सा प्रयास हमारे जीवन और आसपास के वातावरण में एक बड़ा बदलाव ले आये। तो तैयार हो जाइए और खोजिये खुशियों के कुछ पलों को, जो आपके आसपास ही हैं। आपके भीतर ही वह कारण भी मौजूद है ,जो आपके अन्तर्मन को वास्तविक रूप में खुशी प्रदान करता है। हो सकता है, कि ये बदलाव सबके लिए एक बेहद सार्

मेरी खामोशियाँ मुझसे बातें करती हैं

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गुरूवर जब भी मुस्कुराते हैं... मुरझाए चेहरे भी खिल जाते हैं

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गुरूवर जब भी मुस्कुराते हैं... मुरझाए चेहरे भी खिल जाते हैं

Let life become a dream rainbow of happiness

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जीवन खुशियों का स्वप्निल इन्द्रधनुष बन जाये

जीत के लिए संकल्पित होना ही पड़ेगा Must be determined to win

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 नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: Click here on below link: जीत के लिए संकल्पित होना ही पड़ेगा

जीत के लिए संकल्पित होना ही पड़ेगा

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खोलिये..... खुशियों के बन्द दरवाजों को

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पंचतत्व रूपी माटी का "दिया" बनूँगा

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खूबसूरत रिश्ता है समुंदर और उसकी लहरों में...

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भक्ति में निर्मलता हो ऐसी

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सूरज को आवाज तो लगाओ ....

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क्षमा भाव ने बहुतों को तार दिया...

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ह्रदय की गहराइयों से निकले शब्द...

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ह्रदय की गहराइयों से निकले शब्द...

मैं मध्यम वर्ग हूँ...

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वो शिक्षक है....

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वो शिक्षक है....

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Paryushan Parv... आया पर्यूषण पर्व, मन हर्षित हो उठा हमारा...

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Paryushan Parv पर्यूषण पर्व

नीचे देखा तीन गुण...

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नीचे देखा तीन गुण...   नीचे देखा तीन गुण, जीव - जंतु बच जाए। ठोकर की लागे नहीं, पड़ी वस्तु मिल जाये ।। ये चार पँक्तियाँ अपने बचपन में अपनी दादीजी से सुना करता था।  इन्हीं पँक्तियों को आध्यत्मिक भाव के साथ आगे बढ़ाते हुए  कुछ और पँक्तियों के साथ आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।    "जीवदया" के भाव से, "अहिंसा" का फूल जब खिल जाए... किसको पता रे प्राणी, तेरा यह भव परभव तर जाए.. कर्म बंधते हैं जब, देते हैं तुझको ठोकर.. क्या पाया  और साथ क्या ले गया, ये दुर्लभ मनुष्य जन्म खोकर... है जीव! देखकर चलेगा यदि, तो दुर्लभ आत्म ज्ञान मिल जाये... तू तो तरेगा ही इस संसार से, शायद तेरे साथ और भी जीव तर जायेँ... और भी जीव तर जायेँ...            और भी जीव तर जायेँ... नीचे देखा तीन गुण, जीव - जंतु बच जाए। ठोकर की लागे नहीं, पड़ी वस्तु मिल जाये ।।      ।। धन्यवाद ।।             स्वप्निल जैन    

अरुणोदय मुस्कान गुरुवर की

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Anubhav Se Aatmnirbhar

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                       अनुभव से आत्मनिर्भर .               Anubhav Se Aatmnirbhar