नीचे देखा तीन गुण...

नीचे देखा तीन गुण... 



नीचे देखा तीन गुण,
जीव - जंतु बच जाए।
ठोकर की लागे नहीं,
पड़ी वस्तु मिल जाये ।।


ये चार पँक्तियाँ अपने बचपन में अपनी दादीजी से सुना करता था।
 इन्हीं पँक्तियों को आध्यत्मिक भाव के साथ आगे बढ़ाते हुए 
कुछ और पँक्तियों के साथ आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।
  

"जीवदया" के भाव से,
"अहिंसा" का फूल जब खिल जाए...
किसको पता रे प्राणी,
तेरा यह भव परभव तर जाए..

कर्म बंधते हैं जब,
देते हैं तुझको ठोकर..
क्या पाया  और साथ क्या ले गया,
ये दुर्लभ मनुष्य जन्म खोकर...


है जीव!देखकर चलेगा यदि,
तो दुर्लभ आत्म ज्ञान मिल जाये...
तू तो तरेगा ही इस संसार से,
शायद तेरे साथ और भी जीव तर जायेँ...



और भी जीव तर जायेँ...

           और भी जीव तर जायेँ...



नीचे देखा तीन गुण,
जीव - जंतु बच जाए।
ठोकर की लागे नहीं,
पड़ी वस्तु मिल जाये ।।



     ।। धन्यवाद ।।   


    🙏  स्वप्निल जैन  🙏
 


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