Posts

Showing posts with the label वैदिकदर्शन

Hum Sab Karmon ke Adheen Hain ~ हम सब कर्मों के अधीन हैं।

कर्मों के अधीन घटित होने वाली परिस्थितियों पर गुमान क्यों? एक बार कागज का एक टुकड़ा हवा के वेग से उड़ा और पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा। पर्वत ने उसका स्वागत किया और पूछा -भाई! यहाँ कैसे पधारे ? कागज ने दंभ से कहा-अपने दम पर। "जैसे ही कागज ने अकड़ से कहा अपने दम पर" !! तभी हवा का दूसरा झोंका आया और कागज को उड़ा ले गया सीधा गंदी नाली । अगले ही पल वह कागज नाली में गल-सड़ गया। जो दशा एक कागज की है वही दशा हमारी है। पुण्य की अनुकूल वायु का वेग आता है तो हमें शिखर पर पहुँचा देता है, और पाप का झोंका आता है तो रसातल पर पहुँचा देता है। किसका मान ? कैसा गुमान ? जीवन की सच्चाई को समझें। संयोग हमारे कर्मो के अधीन हैं और कर्म कब क्या करवट ले , कोई नहीं जानता। इसलिए कर्मों के अधीन घटित होने वाली परिस्थितियों का  गुमान क्यों ? जैन दर्शन और वैदिक दर्शन वर्तमान के कर्म एवं पूर्व संचित कार्मिक एकाउंट पर जीवन दर्शन और उसके अच्छे बुरे परिणाम को मान्यता देता है। आज का पुरुषार्थ ही आने वाले कर्मों के अकॉउंट को याने की भाग्य को निर्धारित करता है।जन्मों से संचित पुण्य भी एक पल की गलती से नष्