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Showing posts from 2020

2020 अब बीत रहा है... प्रकृति और मानव के बीच कौन जीत रहा है ?

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  मानव एवं प्रकृति संवाद https://youtube.com/playlist?list=PLLH48gQrRNggWosG-XXrTHmWB8kWqrMEw जाते जाते 2020 कई सवाल मन मे छोड़ रहा है, है मानव ! अब क्यों तू प्रकृति से जी चुरा रहा है।

बारिश का पानी और कागज की नाव

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बीच मझदार में फँसी,  मेरी कागज की नाव। बनाई थी बडे शौक से , बारिश हो जाने के बाद।।    डगमगाती सी लग रही , मेरी कागज की नाव। कभी रिमझिम तो कभी , तेज होता बारिश का पानी।।    कभी खाती हिचकोले , पानी की लहरों के साथ। तो फिर कभी मुसकुराती सी लगती,  संभल जाने के बाद।।   चल रहा है ये सिलसिला, एक लंबे अरसे से। मन मचल भयभीत हो रहा,  जाने कितने समय से।।   बचपन में तो युं ही तैर जाती थी, कागज की ये नाव। अब क्या हुआ ऐसा कि , डरी सहमी सी लग रही कागज की नाव।।    सवाल में ही तो, जवाब छुपा रखा है। कागज की नाव तैराने,  बचपन के जाँबाज दोस्तों को जो बुला रखा है।।   समझ सभी को आया तो , सभी के चेहरों पे मुस्कराहट सी फैल गई। बचपन में नहीं समझते थे दुनियादारी,  तभी तो बेझिझक नाव तैर गई।।   हमारे इतने समझते ही , वो नाव नजरों सेओझल हो गई। कागज की नाव आज फिर, जीवन का सुंदर सन्देश दे गई।।   - स्वप्निल जैन  ( मेरी कुछ वर्ष पूर्व लिखी कविता को पुनः प्रकाशित किया है )

भारत से इंडिया और इंडिया से भारत तक

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भारत से इंडिया और इंडिया से भारत तक

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Dosti - Ek Jajbaat ।। “ दोस्ती ” - एक जज्बात ।।

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वर्ष २०२३ -भगवान महावीर का २६२२वें जन्मकल्याणक एवँ २५५०वें मोक्षकल्याणक महामहोत्सव का महत्वपूर्ण वर्ष

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स्वर्णिम इतिहास लिए भारतवर्ष की पवित्र भूमि धर्मप्रदान संस्कृति अपने में स्थापित किये हुए है, जिसकी पवित्र ऊर्जा से ही हम विश्वगुरु कहलाये।  २०२३ -भगवान महावीर का २६२२वें जन्मकल्याणक एवँ २५५०वें मोक्षकल्याणक महामहोत्सव का महत्वपूर्ण वर्ष है। वर्तमान समय में भगवान महावीर के सिद्धांतों को अपनाकर सम्पूर्ण विश्व में शांतिपूर्ण वातावरण स्थापित करने का प्रयास किया जा सकता है।   चल इंसान ! चल जाग ! चल उठ ! के हम फिर से एक नई दुनिया बनायेें..... जहाँ न हो कोई हिंसा मासूम जीवों के साथ , न हो माँस व्यापार ऐसा एक जहाँ बसायें। जहाँ न सुनाई दे मूक पशु - पक्षियों की चीत्कार , जहाँ न हो इंसान का इंसान को खत्म करने वाला सँस्कार। विश्व युद्ध से लेकर करोना महामारी तक इंसान है दहला , खत्म हो दुनिया से परमाणु बम और हर डरावना हथियार। एक सूक्ष्म से कीटाणु ( वाइरस ) के आगे , देखो कैसे इंसान बेबस है.... इंसानियत हुई कैसे लाचार, बंद हो अब तो हिंसा का व्यापार।   सत्य को जो इंसान है नकारता , वो