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Showing posts from August, 2018

भगवान महावीर - जैन दर्शन

अनेकांत के दृष्टा श्री भगवान महावीर ने द्रव्य के निरंतर बदलते असंख्य पर्याय दिखाये| मार्ग तो दिखाया पर मंजिल पाने के बाद किसी से नहीं मिले| अपनी मंजिल तक खुद ही चलना यही भगवान महावीर की शिक्षा थी| न सहारा, न साथी, न सुविधा, न संरक्षण न बचाव| अपनी नौका खुद चलाना होगा| कितनी भी भीड़ हो साधना अकेले ही होगी| यश के पीछे मत दौड़ना भटक जाओगे| ज्ञान भी खुद ही पाना होगा| दृष्टि भी खुद की ही होगी| आचरण भी अकेले का| वे एकांत पथिक थे| भटकाव मिटाया था उन्होंने| न किसी ईश्वर ने दुनिया बनाई, न वह अवतार लेगा, न पापों की क्षमा होगी, न कोई तुम्हें तारेगा| स्वयं पर विश्वास रखो| स्वयं ही प्रयत्न करो| स्वयं ही जानो| धर्म मार्ग है, मुक्ति मंजिल है| यात्री वही जो चलने का साहस जुटा सके| बाहरी यात्रा में अनुयायी हो , अंतर यात्रा में स्वयं का नेतृत्व स्वयं करो| पीछे कोई नहीं दिखेगा, आगे भी सिर्फ आपका अपना ज्ञान होगा जो पथ प्रदर्शन करेगा| (अन्य धार्मिक स्तोत्र से साभार प्राप्त)

जीवन द्रष्टान्त -1

🙏🏼 *जय जिनेंद्र* 🙏🏼 लाओत्से एक बार एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । अचानक हवाएं चलने लगी उसकी नजर एक सूखे पत्ते पर पड़ी। हवाओ के झोखों से वह पत्ता कभी एकदम ऊपर उड़ जाता फिर अचानक वह जमीन पर आ पड़ता था। कभी वह दाएं ओर कभी वह बायें ओर.. कभी ऊपर कभी नीचे... उसने देखा वह पत्ता बिल्कुल राजी था।उसे ऊपर उड़ने में कोई अहंकार नही था और न ही नीचे गिरने पर कोई शिकायत नही थी... दाये बाए पूरब पश्चिम किसी भी दिशा में जाने पर भी कोई विरोध नही.... बस चुपचाप वह पत्ता हवाओं के साथ मस्त था। लाओत्से वहा से उठ गया एक अदभुत आनन्द के साथ एक नए अनुभव के साथ...ये क्षण उसके जीवन में एक नई क्रान्ति उत्पन्न कर गया। जहाँ शिकवा शिकायत है वहाँ समर्पण नहीँ.... और जहाँ समर्पण है वहाँ कोई शिकवा नहीं.... *बस एक अहोभाव।* *एक अद्भुत शान्ति.. 😇* 🙏🏼 *पूर्ण धन्यवाद..*🙏🏼 *आभार से भरी हुई.....* (अन्य धार्मिक स्तोत्र से साभार प्राप्त)

गुरूवर जब भी मुस्कुराते हैं - मुरझाए चेहरे भी खिल जाते हैं।

Sunday, 19 August 2018 कविता शीर्षक ~ गुरूवर जब भी मुस्कुराते हैं - मुरझाए चेहरे भी खिल जाते हैं ~ _______________________ गुरुवर की अप्रतिम मुस्कान से, मुरझाए चेहरे भी खिल खिल जाते हैं। गुरुवर का रूप है बड़ा निराला, जिनके दर्शन मात्र से भव भव के पाप कट जाते हैं।। _________________________ मेरे गुरूवर जब भी मुस्कुराते हैं, मेरे खयालों में  साक्षात जिनेंद्र भगवान 🙏🏼 चले आते हैं। महसूस होने लगता है अद्भुत आत्म स्पंदन , रुक गया हो जैसे कर्मो का क्रंदन।। जब आँखें बन्द करता हूँ,  गुरूवर की मुस्कुराती तस्वीरें नजर आती हैं। ये आत्मा कर लेती है स्वतः कर्मो की निर्जरा , और पुण्य कमा ले जाती है।।  मिट जाए कर्मों का बंधन, और न रहे जन्म मरण का अंधियारा। ऐसा आशीर्वाद दे दो गुरूवर, के न लेना पड़े जन्म दुबारा।। गुरुवर की अप्रतिम मुस्कान से, मुरझाए चेहरे भी खिल खिल जाते हैं। गुरुवर का रूप है बड़ा निराला, जिनके दर्शन मात्र से भव भव के पाप कट जाते हैं।।    - स्वप्निल जैन

जीवन यात्रा और जीवन विकास

जीवन यात्रा में मंज़िल ,पड़ाव,अध्यात्म और जीवन विकास ये सभी अति महत्वपूर्ण पहलू हैं।किसी को भी नकारना कर्म सिद्धान्त को नकारने के बराबर ही माना जायेगा। हम पैदा होते हैं ,उससे पहले से ही जीवन में कर्मो की निर्जरा निरंतर चलती रहती है।जिस प्रकार मिट्टी का रूप और खुशबू मौसम अनुसार बदलता रहता है,उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी कर्म अनुसार बदलता रहता है। इसी दौरान विभिन्न किस्म के पड़ाव जीवन मे आते हैं।पुरुषार्थ रहित होने पर मनुष्य की कर्मगति उसे भाग्य अनुसार  भृमण करवाती रहती है।अगर  आध्यात्मिक प्रगति हो चुकी हो या हो रही हो तो मंज़िल सही दशा में आने लगती है। सही मायने में जीवन विकास के लिए आध्यात्मिक उन्नति अति आवश्यक है।परन्तु उसका स्वरुप समझना जरूरी है। धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की अवधारणा अगर सही मायने में जिसको समझ मे आ गयी तो फिर उसका जीवन संतुलित होना शुरू हो सकता है। जय जिनेन्द्र

I am a traveller of my life.... मैं एक मुसाफिर हूँ ,अपने जीवन का...

I am a traveller of my life....  मैं एक मुसाफिर हूँ ,अपने जीवन का... मैं एक मुसाफिर हुँ... अपने उमड़ते घुमड़ते खयालों का, जिंदगी के अनगिनत सवालों का। मैं एक मुसाफिर हूँ... गुजरे बचपन का, आने वाले पचपन का। मैं एक मुसाफिर हूँ.... अपने कारोबार का, अपने रिश्ते-नातों का। मैं एक मुसाफिर हूँ... अपने समाज का, अपने राष्ट्र का। मैं एक मुसाफिर हूँ... अपने परिवार के सुख-दुख का, अपनी जिमेदारियों का। मैं एक मुसाफिर हूँ... अपने बच्चों के सुख का, उनके आने वाले कल का। मैं एक मुसाफिर हूँ... अपने सुखों का, अपने दुखों का। मैं एक मुसाफिर हूँ... अपने धर्म का, अपने कर्म का। जी हाँ !  मैं एक मुसाफिर हूँ.... अपने वर्तमान और भविष्य का। हाँ ! मैं एक मुसाफिर हूँ , अपने जीवन के अनमोल सफर का..... - स्वप्निल जैन