Posts

Showing posts with the label बारिश

बारिश का पानी और कागज की नाव

Image
बीच मझदार में फँसी,  मेरी कागज की नाव। बनाई थी बडे शौक से , बारिश हो जाने के बाद।।    डगमगाती सी लग रही , मेरी कागज की नाव। कभी रिमझिम तो कभी , तेज होता बारिश का पानी।।    कभी खाती हिचकोले , पानी की लहरों के साथ। तो फिर कभी मुसकुराती सी लगती,  संभल जाने के बाद।।   चल रहा है ये सिलसिला, एक लंबे अरसे से। मन मचल भयभीत हो रहा,  जाने कितने समय से।।   बचपन में तो युं ही तैर जाती थी, कागज की ये नाव। अब क्या हुआ ऐसा कि , डरी सहमी सी लग रही कागज की नाव।।    सवाल में ही तो, जवाब छुपा रखा है। कागज की नाव तैराने,  बचपन के जाँबाज दोस्तों को जो बुला रखा है।।   समझ सभी को आया तो , सभी के चेहरों पे मुस्कराहट सी फैल गई। बचपन में नहीं समझते थे दुनियादारी,  तभी तो बेझिझक नाव तैर गई।।   हमारे इतने समझते ही , वो नाव नजरों सेओझल हो गई। कागज की नाव आज फिर, जीवन का सुंदर सन्देश दे गई।।   - स्वप्निल जैन  ( मेरी कुछ वर्ष पूर्व लिखी कविता को पुनः प्रकाशित किया है )

मौसम की पहली बारिश - First Rains

पहली बारिश का कुछ इस तरह का है नजारा, कुदरत ने है इसे बड़ी खूबसूरती से सँवारा। नशा है कुछ इस तरह का इन बारिश की बूंदों में, के अगर छलक जाये आसमां से तो मौसम के पैमाने बदल जाएं। हम तो परेशान थे अब तक इस बेदर्द गर्मी से, पहली बारिश ने आज एक सच्चे हमदर्द का किरदार निभाया है। मदहोशी हो ही जाती है ऐसे बेहतरीन हमदर्द के मिलने से, और कोई भी नशा क्या इस गर्मी को मिटा पाया है। देखो पहली बारिश का ये कैसा सुरूर छाया है, कल तक था जो मौसम बेदर्द आज वो हमारा हमसाया है। बड़ा लाजमी है उनके होंठो पर पहली बारिश का जिक्र आ जाना, के एक अकेले हम ही इस बारिश के दीवाने तो नहीं हैं। बादलों की आड़ में वो जो आज छिप रहा, वो कल तक गर्मी से कैसे तीखे तेवर दिखा रहा था। पसीने से हो रहे थे हम तो लथपथ, और वो हमारी इस हालत पे मुँह चिड़ा रहा था। अब जाकर राहत मिली है दोस्तो इस बेदर्द गर्मी से, जिसके जुल्मो सितम की कहानी सारा जमाना सुना रहा था।

Pehli Baarish aur Bachapan ~ पहली बारिश और बचपन

Pehli baarish ki masti mai mere yaaron, Aayo ho jaayen kahin hum goom.... पहली बारिश की मस्ती में मेरे यारों, आओ हो जायें कहीं हम गुम.... bachpan ki oon yaadon ki galiyon ka, pata hum sabko hai maloom... बचपन की उन यादों की गलियों का, पता हम सबको है मालूम.... Chat par jana, aur pehli baarish mai jamkar nahana... छत पर जाना ,और पहली बारिश में जमकर नहाना... aur papa ki daant se, fir goomsoom sa ho jana.. और पापा की डांट से, फिर गुमसुम सा हो जाना.. paani rok rok kar, oosme apni naav tairana... पानी रोक रोककर, उसमे अपनी नाव तैराना.. wo bhi kyaa jamana tha yaaron.. वो भी क्या जमाना था यारों... school aate jaate, sadak mai ghootno tak hamare paanvon ka doob jana.. स्कूल आते जाते ,सड़क में घुटनों तक हमारे पांवों का डूब जाना... wo cycle se, ek doosre par paani udana... वो साइकिल से , एक दूसरे पर पानी उड़ाना.. aaj bhi yaad aata hai, to ek muskurahat si aa jati hai... आज भी याद आता है, तो एक मुस्कुराहट सी आ जाती है.. wo bindaas bachapn ka jamana, aur pehli baarish mai hamara