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Showing posts from September, 2021

जीत के लिए संकल्पित होना ही पड़ेगा Must be determined to win

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जीत के लिए संकल्पित होना ही पड़ेगा

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खोलिये..... खुशियों के बन्द दरवाजों को

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पंचतत्व रूपी माटी का "दिया" बनूँगा

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खूबसूरत रिश्ता है समुंदर और उसकी लहरों में...

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भक्ति में निर्मलता हो ऐसी

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सूरज को आवाज तो लगाओ ....

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क्षमा भाव ने बहुतों को तार दिया...

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ह्रदय की गहराइयों से निकले शब्द...

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ह्रदय की गहराइयों से निकले शब्द...

मैं मध्यम वर्ग हूँ...

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वो शिक्षक है....

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वो शिक्षक है....

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Paryushan Parv... आया पर्यूषण पर्व, मन हर्षित हो उठा हमारा...

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Paryushan Parv पर्यूषण पर्व

नीचे देखा तीन गुण...

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नीचे देखा तीन गुण...   नीचे देखा तीन गुण, जीव - जंतु बच जाए। ठोकर की लागे नहीं, पड़ी वस्तु मिल जाये ।। ये चार पँक्तियाँ अपने बचपन में अपनी दादीजी से सुना करता था।  इन्हीं पँक्तियों को आध्यत्मिक भाव के साथ आगे बढ़ाते हुए  कुछ और पँक्तियों के साथ आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।    "जीवदया" के भाव से, "अहिंसा" का फूल जब खिल जाए... किसको पता रे प्राणी, तेरा यह भव परभव तर जाए.. कर्म बंधते हैं जब, देते हैं तुझको ठोकर.. क्या पाया  और साथ क्या ले गया, ये दुर्लभ मनुष्य जन्म खोकर... है जीव! देखकर चलेगा यदि, तो दुर्लभ आत्म ज्ञान मिल जाये... तू तो तरेगा ही इस संसार से, शायद तेरे साथ और भी जीव तर जायेँ... और भी जीव तर जायेँ...            और भी जीव तर जायेँ... नीचे देखा तीन गुण, जीव - जंतु बच जाए। ठोकर की लागे नहीं, पड़ी वस्तु मिल जाये ।।      ।। धन्यवाद ।।             स्वप्निल जैन