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अपनों के आशीर्वाद

नहीं बसेगी बस्ती अब उन गली और चोबरो में.. नही रहेगी वो मस्ती  इन जीवन के अँधियारो में। रात और दिन निकल रहे ,और कुछ बात कह रहे... कुछ तो मतलब है सप्ताह के बीते इतवारों में। राह नही मुड़ सकती मंज़िल तेरी नहीं झुक सकती.. जो तेरा अपना लक्ष्य है वो तुझे ही पाना है। तू नदी को वो बहती धारा है जो रुक नहीं सकती.. मत रुक ऐ जीवन के राही तुझे इस पार आना है। बहता रह उन्मुक्त होकर अपने जीवन को सही दिशा में.. के अंत में तुझे जीवन के सबसे बड़े महासागर में मिल जाना है। अतीत से अपने अपनों के आशीर्वादों के खजाने लाया हूँ.. बहुत देर चला अब लौटकर वापस आया हूँ। स्वप्निल जैन (स्वरचित)

Pita ka Ashirwad ~ पिता का आशीर्वाद

"पिता का आशीर्वाद" एक कविता है पिता का सच्चा आशीर्वाद,  जिसका एहसास हमेशा मन को गुदगुदाता है। जिनके चरणों में बसा होता है स्वर्ग जहाँ, वँहा हर किसी का दिल मुस्कुराता है। पिता का आशीर्वाद है ये जीवन, सारी दुनिया से परे है जिनका समर्पण। रात और दिन भी जिनके सामने थकते हैं, जिनकी मेहनत के फूल परिवार में हमेशा महकते हैं। बना रहता है परिवार एक सुंदर बगिया जिनसे, रिश्तों में भी खुशबू आती है जिनके रहने से। पिता ऐसा सूरज है जो कभी नहीं ढलता है, ईश्वर का एक नाम है"परमात्मा" तो दूजा "पिता" है। हर लम्हा जिनके रहने से, हरदम तरोताज़ा हो जाता है। दिल से चाहते हैं पिता जिनको,  ईश्वर भी उन पर अपना स्नेह बरसाता है। रास्ते कितने भी कठिन हों, रास्तो में चाहे बिछे हो काँटे। पिता का आशीर्वाद ही जीवन के उन रास्तों का सम्मान करना सिखाता है। दुनिया को कई कई बार बदलते देखा, पर पिता का मान हमेशा सर ऊँचा रखना सिखाता है। लोग बदले चाहे जितना रिश्ता बदले, जो कभी न बदले ..... वो *पिता का आशीर्वाद*🙌🏽 है। 🙏🏼🙏🏼🙏🏼एक पिता के आशीर्वाद को सच्चे दिल से नमन🙏🏼🙏🏼🙏