जीवन द्रष्टान्त -1
🙏🏼 *जय जिनेंद्र* 🙏🏼
लाओत्से एक बार एक वृक्ष के नीचे बैठे थे ।
अचानक हवाएं चलने लगी उसकी नजर एक सूखे पत्ते पर पड़ी।
हवाओ के झोखों से वह पत्ता कभी एकदम ऊपर उड़ जाता फिर अचानक वह जमीन पर आ पड़ता था।
कभी वह दाएं ओर कभी वह बायें ओर..
कभी ऊपर कभी नीचे...
उसने देखा वह पत्ता बिल्कुल राजी था।उसे ऊपर उड़ने में कोई अहंकार नही था और न ही नीचे गिरने पर कोई शिकायत नही थी...
दाये बाए पूरब पश्चिम किसी भी दिशा में जाने पर भी कोई विरोध नही....
बस चुपचाप वह पत्ता हवाओं के साथ मस्त था।
लाओत्से वहा से उठ गया एक अदभुत आनन्द के साथ एक नए अनुभव के साथ...ये क्षण उसके जीवन में एक नई क्रान्ति उत्पन्न कर गया।
जहाँ शिकवा शिकायत है वहाँ समर्पण नहीँ....
और जहाँ समर्पण है वहाँ कोई शिकवा नहीं....
*बस एक अहोभाव।*
*एक अद्भुत शान्ति.. 😇*
🙏🏼 *पूर्ण धन्यवाद..*🙏🏼
*आभार से भरी हुई.....*
(अन्य धार्मिक स्तोत्र से साभार प्राप्त)
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