आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज - राष्ट्रचिन्तक जन जन के सन्त
*मयूर पीछी और कमण्डल है उपकरण जिनका...*
*अम्बर ही तो है आवरण उनका..*
*त्याग और तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं जो...*
*भगवान महावीर की परंपरा के परम अनुयायी हैं वो...*
*देश मे शांति और सम्रद्धि का वास हो...*
*जिनकी भावना ऐसी कि कोई चैतन्य आत्मा कभी न उदास हो...*
*विश्व शांति का संदेश जो हैं चारो ओर फैलाते...*
*अपने कल्याणकारी प्रवचनों से जो आत्मचेतना को जगाते...*
*गुरुवर की महान है महिमा प्रत्येक जीव पर करुणा दर्शाते...*
*जियो और जीने दो की जैनत्व परंपरा को जीवंत जो करते...*
*जो आत्म साधना में सदा लीन रहते हैं...*
*तपस्या में तपकर जो खरा सोना बने हैं...*
*राष्ट्रहित राष्ट्र चिंतन के लिए गुरुदेव सदैव खड़े हैं...*
*कई कई तपस्वी जिनकी दी दीक्षा से वैराग्य के मार्ग पर आगे बढे हैं..*
*ऐसे हैं आचार्य श्री जिनके पवित्र पावन चरण भारत भूमि मे पड़े हैं...*
*ग्रहस्थ हों या हों दीक्षार्थी गुरुदेव सबको सदमार्ग दिखलाते...*
*जीवन को कैसे है जीना ये भी गुरुवर हमको बतलाते...*
*गुरुवर तो जन जन में ज्ञान की ज्योति जगाते हैं...
*अपनी गुरुवाणी से आत्मप्रगति का मार्ग दिखलाते हैं*
*देश कैसे आगे बढे उस पर भी आचार्य श्री का चिंतन है...*
*उनको महान भारत की परम्पराओं का पूर्ण स्मरण है...*
*परम् पूज्य गुरुदेव जो* *सत्य,अहिंसा,अपरिग्रह,करुणा,वात्सल्य,विश्वशांति,*
*राष्ट्र कल्याण,आत्म कल्याण और जीवदया ऐसी अनेक कल्याणकारी भावनाओ से ओतप्रोत हैं,ऐसे मोक्षगामी व्यक्तित्व को हम सबका नमन है..*
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स्वप्निल जैन
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