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मन की प्रवृत्ति बदलने का प्रयास करें
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मन की प्रवृत्ति बदलने का प्रयास करें आइए! मन की प्रवृत्ति बदलने का एक छोटा सा प्रयास करें। जिसको करने से अंतर्मन को सुकून मिले, ऐसा कुछ साकारात्मक कार्य अवश्य करें। जिंदगी की दौड़-भाग में कहीं ऐसा न हो, कि हम स्वयं को ही खो बैठें। अगर मन को कुछ साकारात्मक कार्यों द्वारा खुशियाँ प्रदान कर सकते हैं, तो उसके लिए प्रयत्न अवश्य करें। विगत कुछ वर्षोँ में जितनी तेजी से बाह्य जगत का वातावरण बदला है, उसका गहरा असर मानव मन पर पड़ना एक बेहद ही स्वाभाविक सी बात है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ ऐसा साकारात्मक गुण अवश्य होता है, जिससे उसके तेजी से बदलते जीवन में एक अच्छा अनुभव पाया जा सकता है। अपने भीतर के उस तत्व को खोजने का प्रयास करें, जो मन को वास्तविक रूप में सुकून प्रदान करता है। हो सकता है, ये छोटा सा प्रयास हमारे जीवन और आसपास के वातावरण में एक बड़ा बदलाव ले आये। तो तैयार हो जाइए और खोजिये खुशियों के कुछ पलों को, जो आपके आसपास ही हैं। आपके भीतर ही वह कारण भी मौजूद है ,जो आपके अन्तर्मन को वास्तविक रूप में खुशी प्रदान करता है। हो सकता है, कि ये बदलाव सबके लिए एक बेहद ...
गुरूवर जब भी मुस्कुराते हैं... मुरझाए चेहरे भी खिल जाते हैं
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जीत के लिए संकल्पित होना ही पड़ेगा Must be determined to win
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Paryushan Parv... आया पर्यूषण पर्व, मन हर्षित हो उठा हमारा...
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नीचे देखा तीन गुण...
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नीचे देखा तीन गुण... नीचे देखा तीन गुण, जीव - जंतु बच जाए। ठोकर की लागे नहीं, पड़ी वस्तु मिल जाये ।। ये चार पँक्तियाँ अपने बचपन में अपनी दादीजी से सुना करता था। इन्हीं पँक्तियों को आध्यत्मिक भाव के साथ आगे बढ़ाते हुए कुछ और पँक्तियों के साथ आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। "जीवदया" के भाव से, "अहिंसा" का फूल जब खिल जाए... किसको पता रे प्राणी, तेरा यह भव परभव तर जाए.. कर्म बंधते हैं जब, देते हैं तुझको ठोकर.. क्या पाया और साथ क्या ले गया, ये दुर्लभ मनुष्य जन्म खोकर... है जीव! देखकर चलेगा यदि, तो दुर्लभ आत्म ज्ञान मिल जाये... तू तो तरेगा ही इस संसार से, शायद तेरे साथ और भी जीव तर जायेँ... और भी जीव तर जायेँ... और भी जीव तर जायेँ... नीचे देखा तीन गुण, जीव - जंतु बच जाए। ठोकर की लागे नहीं, पड़ी वस्तु मिल जाये ।। ।। धन्यवाद ।। स्वप्निल जैन