Kaagaj ki Naav

          कागज की नाव 

बीच मझदार में फँसी, मेरी कागज की नाव;

बनाई थी बडे शौक से ,बारिश हो जाने के बाद। 

डगमगाती सी लग रही ,मेरी कागज की नाव;
कभी रिमझिम तो कभी ,तेज होता बारिश का पानी।
कभी खाती हिचकोले ,पानी की लहरों के साथ;
तो फिर कभी मुसकुराती सी लगती, संभल जाने के साथ।
चल रहा है ये सिलसिला, लंबे समय से;
मन मचल भयभीत हो रहा, जाने कितने समय से।
बचपन में तो युं ही तैर जाती थी, कागज की ये नाव;
अब क्या हुआ ऐसा कि ,डरी सहमी सी लग रही कागज की नाव।
सवाल में ही ,जवाब छुपा रखा है ;
कागज की नाव तैराने, बचपन के जाँबाज दोस्तों को जो बुला रखा है।
समझ सभी को आया तो ,सभी के चेहरों पे मुस्कराहट सी फैल गई;
बचपन में नहीं समझते थे दुनियादारी, तभी तो बेझिझक नाव तैर गई।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Muni Shri Praman Sagar Ji ~ Mangal Bhavna _मुनि श्री प्रमाण सागर जी - मंगल भावना

"एक संसद भगवान महावीर की भी लगे"

मन में उत्साह जगाने वाली हिंदी कविता ।। हर राह तेरी होगी, हर मंज़िल तेरी होगी ।। Inspirational Poem