सन्दर्भ : करोना वायरस - आधुनिक युग का सन्धिकाल
सन्दर्भ करोना वायरस - आधुनिक युग का सन्धिकाल
ये समय निश्चित तौर पर पूरे विश्व को एक ऐसे दौर में ले आया है,कि पूरी प्रकृति संक्रमण काल से होकर गुजर रही है और मानव जाति पर उसका दुष्प्रभाव विभिन्न प्रकारों से देखा जा सकता है।कॅरोना वाइरस ने पूरे विश्व को जिस प्रकार से प्रभावित कर रखा है,उससे यह बात तो साफ हो जाती है कि मानव जाति को अब प्रकृति से और छेड़छाड़ करने पर , प्रकृति का रौद्र रूप देखने में आ सकता है।जिसे कि प्रकृति की मानव जाति को सीधी चेतावनी भी माना जा सकता है।करोड़ो अरबो मूक प्राणियों को जो पिछले 100 से 200 वर्षो में मानव सभ्यता ने नुकसान पहुंचाया है ,वह कई प्रकार की महामारीयों के रूप में प्रकट हो गया है।
ऐसे समय में पूरी दुनिया की निगाह भारतवर्ष , भारतीय दर्शन और उसकी उस उत्कृष्ठ संस्कृति पर है, जो कि वैज्ञानिक आधार से परिपूर्ण है। और यही शायद प्रकृति ने हम भारतवासियों को सही अवसर दिया है, हमारी उस सांस्कृतिक विरासत को फिर से पूरी ताकत से सहेजकर न सिर्फ अपने देश,समाज अपितु पूरी दुनिया को स्वस्थ मानव जीवन देना और ये लक्ष्य जीवदया और प्रकृति के सम्मान के बिना सम्भव नही है।
जैन दर्शन सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवहिंसा से बचने का जो सन्देश देता है जिसमें जैन दर्शन तो शुरू से ही बताता आया है ,कि एक बूंद पानी में असंख्य जीव होते हैं। अब तो वैज्ञानिकों ने शोध करके बताया है कि एक बूंद पानी मे 36450 जीव होते हैं।
जितना विशुद्ध जैन दर्शन है, उतना ही विशुद्ध दिनचर्या भी इस जैन दर्शन में बताई गई है,जो कि प्रकृति के बहुत ही नजदीक है।और इस विशुद्ध दिनचर्या से ही विभिन्न प्रकार के रोगों को दूर रखने की शक्ति है, सामर्थ्य है।
करोना का रोना बंद हो उसके लिए विशुद्ध दिनचर्या का विशेष ध्यान रखें तो इस महामारी पर जल्द से जल्द विजय प्राप्त की जा सकती है। भारतीयों का इम्यून सिस्टम अपने पूर्वजों द्वारा प्रदत्त उसी विशुद्ध दिनचर्या पर आधारित है।और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में वही भारतीय जीवन शैली ज्यादा कारगर है, जो अब सारी दुनिया को भी समझ आने लगी है।
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