प्रेम विशुद्ध भाव से है...
प्रेम विशुद्ध भाव से है,
मन से है तन से नहीं।
आत्मा से है - दिल से है
पर दिमाग से नही।
प्रेम भक्ति भाव से है,
पर युक्ति से नहीं।
प्रेम जिम्मेदारी से भी है ,
और प्रेम सम्बन्ध रिश्ते से भी है।
मर्यादा से भी है और ,
मन की ऊंचाइयों से भी है।
प्रेम में शुद्धता है,
प्रेम में पवित्रता है।
प्रेम में कर्तव्य की भावना है,
अधिकार की नहीं।
प्रेम से ही परमेश्वर मिलते हैं
और सच्चे प्रेम में ही परमेश्वर का वास भी है।
जो खुदको खुद मे प्रकटा दे वो सच्चा प्रेम है।
जो खुदको खुद मे प्रकटा दे वो सच्चा प्रेम है।
जो एक दूसरे के अंतर्मन को जगा दे वो भी सच्चा प्रेम है।
जो रोते हुए को हँसा दे वो भी प्रेम है।
जो निराश को आशावान बना दे वो भी सच्चा
प्रेम है।
जो उदास के चेहरे पर मुस्कान ला दे वो प्रेम है।
प्रेम निश्छल है।
प्रेम अचल है।
प्रेम ही सच्ची धन संपत्ति है।
प्रेम तो प्रेम है।
प्रेम अजर अमर है।
सच्चा प्रेम युगों युगों तक याद रखा जाता है।
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