भगवान महावीर - जैन दर्शन
अनेकांत के दृष्टा श्री भगवान महावीर ने द्रव्य के निरंतर बदलते असंख्य पर्याय दिखाये| मार्ग तो दिखाया पर मंजिल पाने के बाद किसी से नहीं मिले| अपनी मंजिल तक खुद ही चलना यही भगवान महावीर की शिक्षा थी| न सहारा, न साथी, न सुविधा, न संरक्षण न बचाव| अपनी नौका खुद चलाना होगा| कितनी भी भीड़ हो साधना अकेले ही होगी| यश के पीछे मत दौड़ना भटक जाओगे| ज्ञान भी खुद ही पाना होगा| दृष्टि भी खुद की ही होगी| आचरण भी अकेले का| वे एकांत पथिक थे| भटकाव मिटाया था उन्होंने| न किसी ईश्वर ने दुनिया बनाई, न वह अवतार लेगा, न पापों की क्षमा होगी, न कोई तुम्हें तारेगा| स्वयं पर विश्वास रखो| स्वयं ही प्रयत्न करो| स्वयं ही जानो| धर्म मार्ग है, मुक्ति मंजिल है| यात्री वही जो चलने का साहस जुटा सके| बाहरी यात्रा में अनुयायी हो , अंतर यात्रा में स्वयं का नेतृत्व स्वयं करो| पीछे कोई नहीं दिखेगा, आगे भी सिर्फ आपका अपना ज्ञान होगा जो पथ प्रदर्शन करेगा| (अन्य धार्मिक स्तोत्र से साभार प्राप्त)